Showing posts with label jai jai jagdambe. Show all posts
Showing posts with label jai jai jagdambe. Show all posts

Thursday, September 25, 2014

Jai jai jagdambe जय जय जगदम्बे

जय जय जगदंबे  |  श्री अंबे  |  रेणुके कल्पकदंबे  ||  धृ ||
अनुपम स्वरुपाची  |  तुझी घाटी | अन्य नसे या सृष्टी |  तुझ सम रूप दुसरे | परमेष्टी ॥
करिती झाला कष्टी | शशी रसरसला | वदनपुटी | दिव्य सुलोचन दृष्टी | सुवर्ण रत्नांच्या ॥
शिरी मुकुटी लोपती  | रविशशी कोटी | गजमुखी तुज स्तविले | हेरंभे मंगल सकलारभे  ॥ जय जय
॥  १ ॥
कुमकुम शिरी शोभे | मळवटी | कस्तुरी तिलक ललाटी | नासिक अति सरळ | हनुवटी  ||
रुचीरामृत रस ओठी | समान जणू लवल्या | धनकोटी | आकर्ण लोचन भ्रुकुटी | शशी नित भांग वळी| उपराटी ॥
कर्नाटकाची घाटी | भुजंग नीळरंगा | परी शोभे वेणी पाठी वरी शोभे  ॥जय जय ॥ २ ॥

कंकणे कनकाची | मनगटी | दिव्य मुंद्या | दश बोटी बाजूबंद नगे | बाहुबटी  ॥
चर्चुनी केशर उटी | सुगंध पुष्पानचे हार कंठी | बहु मोत्यांची दाटी |  अंगी नवचोळी | जरीकाठी ॥
पीत पितांबर तगटी | पैजन पदकमली | अति शोभे |  भ्रमर धावती लोभे || जय जय ॥३ ॥

साक्षप  तू क्षितिजा | तळवटी | तुज स्वये जगजेठी  | ओवाळीन आरती |दीपताटी  ॥
घेउनी कर समपुष्टी | करुणामृत हुदयी | संकष्टी | धावती भक्तांसाठी विष्णू सदा | बहु कष्टी ॥
देशील जरी नीजभेटी | तरी मग काय उणे | या लाभे | धाव पाव अविलंबे  ॥जय जय  ॥ ४ ॥